Posts

Showing posts from April, 2020

हम पंछी उन पहाड़ों के..

Image
क्षितिज के द्वार पर पर्वत खड़े जो तानकर सीना, उन्हीं की गोद में मिट्टी के घर हमने बनाए हैं । उड़ें हम गर्व से नभ में,हैं पंछी उन पहाड़ों के  उसी आंचल में तिनकों से,घरौंदे कुछ सजाए हैं। न महलों की,न शोहरत की,न शहरी शान की चिंता पहाड़ी हम कि हमको जीत ले,मुस्कान काफी है इन्हीं झरनों,वनों,खेतों में अपनी एक दुनिया है, कभी अम्बर भी छू लेंगे,बस एक उड़ान काफी है - शशांक उनियाल

बस 21 दिन ...... #my_lockdown_poem

Image
रुको जरा हे कर्म पुरोधा  थाम कदम कुछ ठहर चलो  कैद रखो खुद को अपने घर  गली- नगर ना शहर चलो  हैं चार दीवारें , सीमा सीमित घुटन हो रही सहन करो  आजाद गगन के पंछी तुम कुछ देर परों पर रहम करो  हालात विकट और समय विषम  दहलीज लांघना ठीक नहीं  है जीत निहित घर रुकने में   सड़कों पर लड़ना ठीक नहीं  है शत्रु भयंकर जंग जटिल ना संभले समझो हार गए  होकर अनुशासित 21 दिन गर संभल गए तो जीत गए  - शशांक