बस 21 दिन ...... #my_lockdown_poem

रुको जरा हे कर्म पुरोधा 
थाम कदम कुछ ठहर चलो 
कैद रखो खुद को अपने घर 
गली- नगर ना शहर चलो 

हैं चार दीवारें , सीमा सीमित
घुटन हो रही सहन करो 
आजाद गगन के पंछी तुम
कुछ देर परों पर रहम करो 

हालात विकट और समय विषम 
दहलीज लांघना ठीक नहीं 
है जीत निहित घर रुकने में  
सड़कों पर लड़ना ठीक नहीं 

है शत्रु भयंकर जंग जटिल
ना संभले समझो हार गए 
होकर अनुशासित 21 दिन
गर संभल गए तो जीत गए 

- शशांक 

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