रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्! मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥1॥ शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्। बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥2॥ कनकाब्ज-विभूषित-भीति-युतं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्। प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥3॥ मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्। परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥4॥ सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्। निज-कान्ति-विलायित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥5॥ भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्। विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥6॥ परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्। सुर-योषित-सेवित-पाद-तमं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥7॥ गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्। कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव...
Comments
Post a Comment