नया साल .....
क्यूँ करूँ वर्ष का अभिनन्दन ?
क्यूँ करूँ धरा माटी चन्दन ?
क्यूँ करूँ प्रलोभित हरि वंदन
है दिल के बिसरे नगमों पर
बस साज नया पर राग वही
है साल नया पर हाल वही ।।।।
है तीव्र लहर सा वह एक पल
कर सुप्त भाव जीवित संचल
कुछ सोकर जागे नयनों में
सुन्दर से सपनों की हलचल
कुछ गायब होते गीतों के
हैं छंद नए पर ताल वही
है साल नया पर हाल वही ।।।
हैं कुछ होठों में नए तराने
कुछ कलियों के फूल सुहाने
कुछ पलकों में बंद इरादे
कुछ चेहरों के नए बहाने
कुछ चहकाती चिड़ियों के
हैं नीड़ नए पर डाल वही
है साल नया पर हाल वही
चल ठेहर चलें कुछ देर ज़रा
कुछ देर दृगों को फेर ज़रा
क्या पाकर पिछले सालों में
क्या खोया कुछ तो हेर ज़रा
इस जग की आपाधापी में
जब दिशा नयी क्यों चाल वही ??
है साल नया पर हाल वही !!!
क्यों साल नया पर हाल वही ??
- शशांक
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