कांटे गिरे हैं राह में छलनी हुआ हर पाँव है....

कांटे गिरे हैं राह में छलनी हुआ हर पाँव है 
प्यासा पड़ा हर कंठ है ना शीत है ना छांव है 
खो गए हैं सुप्त आँखों के सभी सपने कहीं
गरजता सा फिर से इक तूफ़ान जगना चाहिए ।

सिर्फ कुछ लाशें जगाना मेरा मकसद नहीं
बे पतवार पानी में रुकी हर नाव चलनी चाहिए ।

सूनी पड़ी हर गली वीरां पड़े हर गांव में
मुठ्ठीयों को खोल अब हर हाथ मिलना चाहिए ।

बंद आँखों को खुला रखना भी कुछ आसान है
काशिशें कुछ हैं कि अब हर नींद जगनी चाहिए । 
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में ही सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ।। 

- शशांक 

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