ऐ जिन्दगी तू रूठ नहीं सकती ऐसे .....
तू इतनी क्यूं मगरुर बता
क्यूं लफ्ज़ तेरे शर्मिंदा है ?
गर उत्तर ना हों हामी भर
मैं जान सकूं तू जिंदा है
तू परछाई, मेरा हर उत्तर
आज तुझे देना होगा
अस्तित्व तेरा और मेरा क्या ?
ये आज तुझे कहना होगा
उलझे ख्वाबों के बीच
वो कल का गीत नहीं लिख सकता मैं ,
बिन तेरे, हर टूटे साजों का
संगीत नहीं लिख सकता मैं
जिंदगी तू मेरी पूरक है
तू रूठ नहीं सकती ऐसे
संग सदियों की यारी पल में
टूट नहीं सकती ऐसे । ☺️
- शशांक
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