हम पंछी उन पहाड़ों के..
क्षितिज के द्वार पर पर्वत खड़े जो तानकर सीना,
उन्हीं की गोद में मिट्टी के घर हमने बनाए हैं ।
उड़ें हम गर्व से नभ में,हैं पंछी उन पहाड़ों के
उसी आंचल में तिनकों से,घरौंदे कुछ सजाए हैं।
न महलों की,न शोहरत की,न शहरी शान की चिंता
पहाड़ी हम कि हमको जीत ले,मुस्कान काफी है
इन्हीं झरनों,वनों,खेतों में अपनी एक दुनिया है,
कभी अम्बर भी छू लेंगे,बस एक उड़ान काफी है
- शशांक उनियाल
sunder bheji !! pranam
ReplyDelete