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कविमन....

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लिखे हर आंसुओं के बोल, जिनके छंद बन बैठे  जज्बात जो पिघले, तो फौरन शब्द बन बैठे  लिखी हर सांझ की कुमकुम, वो शबनम हर सहर की  वो आंसू बादलों के, कहानी हर पहर की  लिखे हर गीत नदियों के,  वो लहरों की खुमारी   खामोशी हर हवाओं की  जो कागज पर उतारी - शशांक उनियाल (🐦uniyalshashank4 ) 

उलझनों की उलझनों में उलझना छोड़ो तो सही .......

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हम पंछी उन पहाड़ों के..

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क्षितिज के द्वार पर पर्वत खड़े जो तानकर सीना, उन्हीं की गोद में मिट्टी के घर हमने बनाए हैं । उड़ें हम गर्व से नभ में,हैं पंछी उन पहाड़ों के  उसी आंचल में तिनकों से,घरौंदे कुछ सजाए हैं। न महलों की,न शोहरत की,न शहरी शान की चिंता पहाड़ी हम कि हमको जीत ले,मुस्कान काफी है इन्हीं झरनों,वनों,खेतों में अपनी एक दुनिया है, कभी अम्बर भी छू लेंगे,बस एक उड़ान काफी है - शशांक उनियाल

बस 21 दिन ...... #my_lockdown_poem

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रुको जरा हे कर्म पुरोधा  थाम कदम कुछ ठहर चलो  कैद रखो खुद को अपने घर  गली- नगर ना शहर चलो  हैं चार दीवारें , सीमा सीमित घुटन हो रही सहन करो  आजाद गगन के पंछी तुम कुछ देर परों पर रहम करो  हालात विकट और समय विषम  दहलीज लांघना ठीक नहीं  है जीत निहित घर रुकने में   सड़कों पर लड़ना ठीक नहीं  है शत्रु भयंकर जंग जटिल ना संभले समझो हार गए  होकर अनुशासित 21 दिन गर संभल गए तो जीत गए  - शशांक 

वो यादें ........

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वो हरपल मुसल्सल दे दस्तक ज़हन में वो मुश्किल पहेली सी उलझी सी यादें वो यादें भंवर में जो डगमग सफ़ीना  मैं साहिल पुराना वो अपनी सी यादें  वो रस्ते वो झरने वो मिट्टी की खुशबू वो बारिश वो होली दिवाली की यादें  वो यादें जिन्हें छोड़ हम आ गए हों  उन्हें भूल जाने की हिम्मत नहीं है  वो चेहरे जो अम्बर के जगमग सितारे  कभी सेहन-ए-गुलशन में थे सब के प्यारे वो अपना जो लाखों में दिलकश लगा था  ये किस्से ये यादें थमाकर गया जब वो तारीख मंजर सितम वक्त-ए-रुखसत वो चेहरा समां सुर्ख यादों की गफलत ये यादें जहन में जो घर कर गई हैं  इन्हें अब मिटाने की हिम्मत नहीं है । - शशांक

ऐ जिन्दगी तू रूठ नहीं सकती ऐसे .....

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तू इतनी क्यूं मगरुर बता  क्यूं लफ्ज़ तेरे शर्मिंदा है ? गर उत्तर ना हों हामी भर  मैं जान सकूं तू जिंदा है  तू परछाई, मेरा हर उत्तर  आज तुझे देना होगा  अस्तित्व तेरा और मेरा क्या ?  ये आज तुझे कहना होगा  उलझे ख्वाबों के बीच  वो कल का गीत नहीं लिख सकता मैं , बिन तेरे, हर टूटे साजों का  संगीत नहीं लिख सकता मैं  जिंदगी तू मेरी पूरक है  तू रूठ नहीं सकती ऐसे  संग सदियों की यारी पल में  टूट नहीं सकती ऐसे । ☺️  - शशांक

हे बुद्ध के प्रबुद्ध .......

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बुद्ध के प्रबुद्ध हे वसुंधरा के वीर आज इस कराल काल की लकीर का बखान ले सूख जाए नीर-नीर रक्त-रक्त हो शरीर  धीर,शम-शीर तू तुनीर तीर तान ले ।। शूल का रुदन हो या त्रिशूल का दमन हो  धूल-धूल हर दिशा-दिशा प्रतीत हो हो बेड़ियों में मूल चाहे बीहड़ों में फूल अनुकूल-प्रतिकूल हार जीत हो ।। काल के सवालों का समूह चक्रव्यूह चाहे  आज अंग-अंग पे लोटता भुजंग है  जीत का चुनाव तेरे यत्न और प्रयत्न पर, तू लड़ के तेरे उत्तरों की जंग है ।। सीख चंद्रगुप्त की या ज्ञान कुंतीपुत्र से कि जंग जीतने का सिर्फ युध्द ही विकल्प है  शत्रु पर रहम नहीं तो हार पर सहम नहीं पुनः पुनः प्रयत्न ही तो जीत का प्रकल्प है ।। - शशांक