हे बुद्ध के प्रबुद्ध .......

बुद्ध के प्रबुद्ध हे वसुंधरा के वीर आज इस कराल काल की लकीर का बखान ले सूख जाए नीर-नीर रक्त-रक्त हो शरीर धीर,शम-शीर तू तुनीर तीर तान ले ।। शूल का रुदन हो या त्रिशूल का दमन हो धूल-धूल हर दिशा-दिशा प्रतीत हो हो बेड़ियों में मूल चाहे बीहड़ों में फूल अनुकूल-प्रतिकूल हार जीत हो ।। काल के सवालों का समूह चक्रव्यूह चाहे आज अंग-अंग पे लोटता भुजंग है जीत का चुनाव तेरे यत्न और प्रयत्न पर, तू लड़ के तेरे उत्तरों की जंग है ।। सीख चंद्रगुप्त की या ज्ञान कुंतीपुत्र से कि जंग जीतने का सिर्फ युध्द ही विकल्प है शत्रु पर रहम नहीं तो हार पर सहम नहीं पुनः पुनः प्रयत्न ही तो जीत का प्रकल्प है ।। - शशांक