Posts

Showing posts from February, 2020

हे बुद्ध के प्रबुद्ध .......

Image
बुद्ध के प्रबुद्ध हे वसुंधरा के वीर आज इस कराल काल की लकीर का बखान ले सूख जाए नीर-नीर रक्त-रक्त हो शरीर  धीर,शम-शीर तू तुनीर तीर तान ले ।। शूल का रुदन हो या त्रिशूल का दमन हो  धूल-धूल हर दिशा-दिशा प्रतीत हो हो बेड़ियों में मूल चाहे बीहड़ों में फूल अनुकूल-प्रतिकूल हार जीत हो ।। काल के सवालों का समूह चक्रव्यूह चाहे  आज अंग-अंग पे लोटता भुजंग है  जीत का चुनाव तेरे यत्न और प्रयत्न पर, तू लड़ के तेरे उत्तरों की जंग है ।। सीख चंद्रगुप्त की या ज्ञान कुंतीपुत्र से कि जंग जीतने का सिर्फ युध्द ही विकल्प है  शत्रु पर रहम नहीं तो हार पर सहम नहीं पुनः पुनः प्रयत्न ही तो जीत का प्रकल्प है ।। - शशांक 

सौंदर्य जन्मभूमि उत्तराखंड का ......

Image
कि तेरी हर निशा हर भोर शबनम चांदनी लिख दूं बरसती धूप पत्तों पर,छनकती रौशनी लिख दूं  महकते फूल की खुशबू लिखूं हर कूक कोयल की  थिरकती थाप पर नदियां बसंती रागिनी लिख दूं ।। कि माथे पर बुरांशी फूल कुमकुम की छटा लिख दूं  मुकुट पर बादलों की ओढ़नी ओढ़े घटा लिख दूं संजोए फूल फ्योंली के सुनहरी पीत साड़ी पर गले में हार नदियों के,नदी में चाशनी लिख दूं ।। कि तेरी हर शिखा पर मंदिरों की घंटियां लिख दूं फिज़ा में ढोल मंजीरे हवा में शोखियां लिख दूं  सिसकते आंसुओं के गीत लिखदूं घुरुन घुघुती की पिरोदूं शब्द के मोती,कि तेरी वादियां लिख दूं ।। ✍️ शशांक

तुम नागराज की टिहरी हो , मैं भोले की उत्तरकाशी.....

Image
तुम हो बर्फीली औली सी , मैं महकी फूलों की घाटी  तुम हेमकुंड तुम भीमताल, मैं हिमगिरि की डांडी कांठी  तुम हो पिंडारी की वादी , मैं बागेश्वर का संगम हूं तुम ऋषि पुलस्त्य की नैनी हो ,मैं टिहरी झील विहंगम हूं। तुम हर की पौड़ी हरिद्वार, मैं अपना छोटा चारधाम तुम सायं गंगा की पूजा , मैं उगते सूरज का प्रणाम तुम ऊंची नंदा की चोटी , मैं गौरी, दूना, चौखंबा तुम कोसी सरयू सरस्वती ,मैं कल कल करती भिलंगना। तुम नागराज की टिहरी हो, मैं भोले की उत्तरकाशी तुम हो विष्णू की अल्मोड़ा,मैं द्रोण की नगरी का वासी(दून) तुम मसूरी झरनों की रानी, मैं हूं चोंपता का बुग्याल तुम चंद वंश की कुमाऊं ,मैं कत्यूरी का गढ़ गढ़वाल ।। - शशांक (@UniyalShashank4)

मुर्दा बनकर मौन रहो या .......

Image
झुककर चलना और सब सहना, दोनों में अंतर होता है लेकिन सब सहके चुप रहना, ये भाव भयंकर होता है पर आज समय है अपने मन को बुद्ध करो या क्रुद्ध करो  मुर्दा बनकर मौन रहो या संघर्षों से युद्ध करो ।।

शाहीन बाग .......🇮🇳

Image
मैं भारत हूँ  हाँ मैं वही भारत हूँ  जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक  बदलते सुरों के कई साज देखे हैं  मैंने कुछ आँखो में उमड़ते कई इन्कलाब देखे हैं  मैंने हर बेघर को इस आँचल में जगह दी है  हर नंगे पैरों को इस मिटटी की सतह दी है  पर उन्ही पैरों से कुचलते इस जिस्म पर मैंने  रंजिशों के घाव और बगावत के कई दाग देखे हैं मैंने अपने ही आँगन के टुकड़ों पर बनते    हजारों शाहीन बाग़ देखे हैं । मैं वही भारत हूं ...... - शशांक 

तू ही राजराजेश्वरी तू भवानी ....

Image
उत्तराखंड के समस्त देवी मंदिरों को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश ...... तू ही राजराजेश्वरी तू भवानी  तू ही चंद्रबदनी तू ही बाराही गरूदारूढ़े योगिनी अन्नपूर्णे तू कामाख्या मनषा तू इंद्रासनी गदाहस्त रेणु उमा नागनी तू  तू दूनागिरी कालका उर्वशी  तू ही नंदा नैना तू सुरकंडा ज्वाला तू धारी शिवा ज्वालपा लक्ष्मी पुर्सुरी वैष्णो कुंजापुरी डाटकाली  तू पूर्णागिरी संतला अंबिका  हे गुरना रिंगाली शिवा साधिके तू झोमा कोटेमाई रमा रेणुका । - शशांक 

पहाड़ी नारी .....

Image
महज कंगन और चूड़ियों तक सिमटे नहीं ख्वाब हमारे   इन पहाड़ों को सजाने का हुनर भी हमने सीखा है  ये बस्ते महज कागजों और किताबों वाले बस्ते नहीं हैं  इनमें कुछ बीहड़ों में जान डालने का भी नुस्खा है  कई चुनौतियों में भी खुश रह लेते हैं हम मां बाप ने सहना नहीं लड़ना सिखाया है  दूर उस पहाड़ की चोटी पर घरौंदे हैं हमारे  मां बाप ने चलना नहीं उड़ना सिखाया है  ✍️शशांक 

कांटे गिरे हैं राह में छलनी हुआ हर पाँव है....

Image
कांटे गिरे हैं राह में छलनी हुआ हर पाँव है  प्यासा पड़ा हर कंठ है ना शीत है ना छांव है  खो गए हैं सुप्त आँखों के सभी सपने कहीं गरजता सा फिर से इक तूफ़ान जगना चाहिए । सिर्फ कुछ लाशें जगाना मेरा मकसद नहीं बे पतवार पानी में रुकी हर नाव चलनी चाहिए । सूनी पड़ी हर गली वीरां पड़े हर गांव में मुठ्ठीयों को खोल अब हर हाथ मिलना चाहिए । बंद आँखों को खुला रखना भी कुछ आसान है काशिशें कुछ हैं कि अब हर नींद जगनी चाहिए ।  मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में ही सही हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ।।  - शशांक 

और हम रुके रुके खुमार देखते रहे .......

Image
क्या खुला ज़हान था  उम्र पर ग़ुमान था  दिल मेरा स्वतंत्र मूक पख्छि की उड़ान था किन्तु एक रोज पाँव आप ही ठहर चले  कौतुहल विचित्र जान नेत्र भी सहर चले   कुछ अज़ीब हो गया कि कुछ भी ना समझ सके न खेल को समझ सके ना खेलना समझ सके  और हम गिरे गिरे  भाव से घिरे घिरे  प्रेम के प्रपंच का सृंगार देखते रहे  वो खेल खेलता गया ख़ुमार देखते रहे  आँख भी खुली न थी कि हाय नज़र लग गयी भोर तक हुई न थी कि दोपहर गुज़र गयी कुछ हवा बदल चली कि वो उड़ान रुक गयी  मोम भी पिघल चले कि शाख़शाख़ झुक गयी  चाल ना संभल सकी तो कुछ दिशा बदल गयी  वेग सी  ह्रदय में सुप्त अग्नि भी मचल गयी  और हम रुके रुके  राह में थके थके  प्रेम के स्पर्श की बहार देखते रहे  वो खेल खेलता गया ख़ुमार देखते रहे  क्या हसीन दौर था कि दिल लगाव कर उठा  स्वप्न की शिरौमणी का खुद चुनाव कर उठा  क्या वसंत था कि फूल फूल प्यार कर उठा एक ही स्वरूप देख जो मिला नज़र उठा  क्या विडम्बना थी अग्नि छीर पार कर उठा इस तरफ ह्रदय उठा तो उस तरफ जिगर उठा और हम पिटे पिटे  ...

नया साल .....

Image
क्यूँ करूँ वर्ष का अभिनन्दन ? क्यूँ  करूँ धरा माटी चन्दन  ? क्यूँ करूँ प्रलोभित हरि वंदन  है दिल के बिसरे नगमों पर  बस साज नया पर राग वही  है साल नया पर हाल वही ।।।। है तीव्र लहर सा वह एक पल कर सुप्त भाव जीवित संचल  कुछ सोकर जागे नयनों में  सुन्दर से सपनों की हलचल  कुछ गायब होते गीतों के  हैं छंद नए पर ताल वही  है साल नया पर हाल वही  ।।। हैं कुछ होठों में नए तराने  कुछ कलियों के फूल सुहाने  कुछ पलकों में बंद इरादे  कुछ चेहरों के नए बहाने  कुछ चहकाती चिड़ियों के    हैं नीड़ नए पर डाल वही  है साल नया पर हाल वही  चल ठेहर चलें कुछ देर ज़रा  कुछ देर दृगों को फेर ज़रा  क्या पाकर पिछले सालों  में  क्या खोया कुछ तो हेर ज़रा  इस जग की आपाधापी में  जब दिशा नयी क्यों चाल वही  ?? है साल नया पर हाल वही !!! क्यों साल नया पर हाल वही ?? - शशांक 

जब गिरकर उठना उठकर चलना ही खुद्दारी लगता है....

Image
जब ये रंगीली दुनिया , काली काली सी हो जाती है  वर्तमान की आशायें सब जाली सी हो जाती है जब आँखें झुककर  चलनेेे को , विवश दिखाई देती हैं दिल के कोने में रोने की , कुछ चीख सुनाई देतीं है जब इस -उस के असमंजस में,आँखें  गीली हो जाती हैं  जब अपनों के रिस्तों की गांठें , सब ढीली हो जाती हैं  जब सब यारो का जलसा भी कुछ बेगाना सा लगता है  जब अपने घर का रस्ता भी सुनसान विराना लगता है  जब लोगों का मेला भी बस , इक सन्नटा लगता है  विश्वासों का रैला भी बस,  सैर सपाटा लगता है  तब घुट घुटकर जीने में बर्बाद जवानी लगती है  कष्टों और संघर्षों की बेअंत कहानी लगती है  फिर मन के सन्नाटे में आवाज कहीं से आती है  स्याही सी काली रातों में इक किरण कहीं दिख जाती है  फिर हलातों और भावों में ऐसा विप्लव आता है  आशा  के अँधेरे में काँटों का पथ दिख जाता है  अश्रु बहा रोते रहना दिल को दुस्वारी लगता है  और गिरकर उठना उठकर चलना ही खुद्दारी लगता है  जो कल तक एक बेगाना था वो जाना जाना लगता है  जो कल तक की कहानी थी वो एक फ़साना...

फिर छोटी छोटी बातों पर बोलो क्यूँ अश्रु बहाते हो ?

Image
नभ अपने जग मग तारों पर देखो कितना इठलाता है  गेहनों से तारों को पहने स्वर्णिम प्रकाश बिखराता है लेकिन किस्मत उसकी देखो तारे ना साथ निभाते हैं  कुछ छोड़ गगन को देते हैं कुछ तम विलीन हो जाते हैं  पर देखो उसकी आँखों में क्या एक अश्रु भी होता है ।  टूटे उसके भी तारे हैं वो दिल उसका भी रोता है ।।  नए पल्लवित पुष्प  लिए कलियाँ सदैव मुस्काती हैं  महके से फूलों के शबाब से उपवन को महकाती हैं  लेकिन बागों  की आंधी में ,वो फूल न साथ निभाते हैं  कुछ छोड़ कली को देते हैं ,कुछ आंधी में बह जाते हैं  फिर भी उन टूटी कलियों पर पुष्पों का खिलना होता है  छूटे  उसके भी प्यारे हैं वो दिल उसका भी रोता है ।। नित कल कल करती धाराएं सरिता संग बहती जाती हैं चलते रुकते गिरते उठते  पूरे पथ साथ निभाती हैं  पर होती हैं गुमनाम  सभी जब अंत समय आ जाता है  जाकर मिलती हैं सागर में ना कोई साथ निभाता है  लेकिन  खोने के दुःख से क्या रुकना सरिता का होता है खोयी उसने भी सखियाँ हैं वो दिल उसका भी रोता है । फिर छोटी छोटी बातों पर बोलो क्य...

सरस्वती स्तोत्रम्

Image
रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम्!  मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥1॥  शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।  बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥2॥   कनकाब्ज-विभूषित-भीति-युतं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।  प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥3॥ मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।  परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥4॥  सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।  निज-कान्ति-विलायित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥5॥  भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।  विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥6॥  परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।  सुर-योषित-सेवित-पाद-तमं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्॥7॥  गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।  कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव...